आनंद बाज़ार पत्रिका, कोलकाता, १४ जनवरी २०१०
रमेश के सामने ही बीटी बैगन को लेकर घोर विरोध
जीन बदलकर व्यापार हेतू बैगन की खेती को लेकर घोर विरोध की बात पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश खुद सुनकर गए.
बुधवार को विज्ञानं मंदिर में आयोजित बैठक में किसान, वैज्ञानिक, राजनेता और चिकित्सकों की बैठक में पर्यावरण एवं वन मंत्री ने कहा की केंद्र ने बीटी बैगन की खेती के बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है. कोलकाता जैसे ही अन्य छ: और शहरों के लोगों की राय जानने के बाद ही इस विषय में फरवरी के मध्य में कोई फैसला किया जायेगा.
बीटी बैगन की खेती को लेकर रमेश नें मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्जी से भी चर्चाएं की.
रमेश ने कहा की सात शहरों के लोगों की राय जानने के बाद ही बीटी बैगन की खेती को मंजूरी दी जायेगी या नहीं इसको घोषणा की जायेगी या इसके लिए और वैज्ञानिक परिक्षण की जरुरत है.
बीटी बैगन को लेकर बोलने के लिए बैठक में सौ से अधिक लोग इकठ्ठा हुए थे. बैठक में देरी से पहुँचने के कारण लोगों से माफ़ी मांगते हुए रमेश नें कहा की आप बंगला में भी बोल सकते हैं. मुझे बंगला बोलना आता है. बहुत अच्छी तरह से नहीं आती है लेकिन मैं समझ सकता हूँ.
बीटी बैगन की खेतीको जेनेटिक इंजीनियरिंग कमिटी से मंजूरी मिलने के बावजूद मंत्रीजी आम आदमियों की राय जानना चाहते हैं. इस बैठक में यह ही हुआ. अधिकाँश वैज्ञानिक आंध्र प्रदेश और तमिलनादू से आये थे.
मंत्री जी के साथ इस बैठक में बहुत सारे किसान भी शामिल थे. उत्तर २४ परगना के किसान नारायन चंद्र बाचार नें जानकारी दी की जिसलिए किसानों को बीटी बैगन की खेती के लिए धकेला जा रहा है उस किट को जैविक कीटनाशक से ही मार डाला जा सकता है. उन्होंने बताया की हमलोग अभी बैगन का बीज खुद ही रख सकते हैं. लेकिन बीटी बैगन आने से खेती के खर्च काफी बढ़ जायेंगे जिसके बाद हम खेती करने लायक नहीं रह जायेंगे. हमलोगों को पता नहीं है की बीटी बैगन उबलेगा की नहीं या इसे जलाया जा सकेगा या नहीं या इस बैगन के शरीर पर गाय और बकरियों जैसी बिमारी लग जायेगी.
बीटी बैगन के पक्ष में भी कई वक्तायों नें बैठक में चर्चा की. बैठक में हिस्सा लेने आये नदिया के किसान जलालुद्दीन एवं २४ परगना से आये सुजुद्दीन मंडल ने कहा की बीटी बैगन की खेती से अगर हमें फायदा होता है तो हम बीटी बैगन की ही खेती करेंगे. इससे पर्यावरण या स्वस्थ्य को नुक्सान पहुंचेगा या नहीं यह देखना हमारा काम नहीं हैं. यह वैज्ञानिकों का काम हैं.
बाद में इन किसानों से बातचीत के बाद पता चला की उत्तर २४ परगना के बीटी खेती का पक्ष लेने वाली मोहिको कम्पनी नें इन्हीं किसानों के बलबूते पर बीटी खेती को बढ़ावा देने के लिए मुहीम छेडा था.
बाज़ार में बीटी बैगन के आने से बीजों पर किसानो का नियंत्रण खत्म हो जाएगा यह आशंका एक वैज्ञानिक और राज्य के कृषि कमीशन के सदस्य तरुण कुमार बसु नें जाहिर की.
विशेषज्ञों की एक कमिटी ने रिपोर्ट दी है की जहाँ बीटी बैगन की खेती की जायेगी उसके ३० मीटर के भीतर अन्य किसी फसल को नहीं उगाया जा सकेगा. इसलिए ३० मीटर की जमीन को खाली छोडना होगा.
बंगीय विज्ञानं परिषद की ओर से अरुणभ मिश्रा नें किसानों के मौलिक अधिकार के बारे में प्रश्न करते हुए कहा की बीटी बैगन की खेती शुरू होने से किसान आपने चयन के अधिकार खो देगा.
वैज्ञानिक मुरारी यादव ने बताया की इस राज्य के अधिकाँश किसान गरीब हैं और प्रांतीय हैं. ये लोग सस्ते दाम पर ही खेती चाहते हैं. जीन बदलकर की जानेवाली खेती पर बहुत अधिक खर्च बैठता है जो उनके पहुँच से बाहर है. आंध्र प्रदेश के रुई की खेती करने वाले किसानों की ओर देखने से इस बात को अच्छी तरह से समझा जा सकता हैं.
राज्य के कृषि कमीशन के चेयरमन तथा युवा कृषि वैज्ञानिक रविंद्रनाथ बसु नें जयराम रमेश को यह बता दिया की कमीशन के रिपोर्ट में हमनेंसाफ़ तरीके से यह स्पष्ट कर दिया है की बीटी फसल के उपज के लिए जमीन का परिक्षण या इसकी व्यापारिक खेती पूरी तरह से प्रतिबंधित है.
जीएम्-फ्री बिहार के प्रतिनिधि पंकज भूषण ने जयराम रमेश को स्पष्ट रूप से कहा की बीटी बैगन की खेती को मंजूरी देने के लिए आपलोग तैयार हैं लेकिन ऐसी क्या बाध्यता है कि आपको इसे मंजूरी देनी ही है.
इसके बाद बीटी बैगन की खेती का विरोध करने वाले किसानों के समक्ष जयराम रमेश नें १५ मिनट का भाषण भी दिया.
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