विजय मनोहर तिवारी Saturday, October 31, 2009 02:59 [IST]
भोपाल. बीटी बैंगन को अनुमति नहीं देने संबंधी कृषि मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया के वक्तव्य के बावजूद मध्यप्रदेश में इस जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) फसल केबीजों की बुकिंग शुरू हो गई है। विशेषज्ञों के ताजे अध्ययन बताते हैं कि बीटी बैंगन और अन्य हाईब्रीड बैंगन के उत्पादन संबंधी आंकड़ों में भी विरोधाभास है और बीटीबैंगन के पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और आर्थिक फायदों के वैज्ञानिक परीक्षण तक नहीं हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार बीटी बैंगन की बुकिंग 50 हजार रुपए प्रति किलो की दर से शुरू हो गई है। यह अन्य हाईब्रीड बैंगन के बीजों से पांच गुना ज्यादा महंगा बताया जा रहा है।बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटों की भारतीय सहयोगी कंपनी माहिको इसे लांच कर रही है। पहले से ही माहिको की करीब 15 प्रकार के हाईब्रीड बैंगन की किस्में बीज बाजारमें प्रचलित हैं। केंद्र सरकार की नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी द्वारा बीटी बैंगन को तकनीकी अनुमति देने के साथ ही देश भर में एक तरफइसका तीव्र विरोध शुरू हो गया है और दूसरी तरफ जनवरी 2010 में व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति की आशा में बीजों की बुकिंग भी शुरू हो गई है।
आंकड़े विरोधाभासी: मध्यप्रदेश मूल के कृषि विशेषज्ञ सुरेश मोटवानी बीटी बैंगन पर अध्ययन कर रहे हैं। दैनिक भास्कर से चर्चा में उन्होंने बताया कि माहिको ने बीटीबैंगन का उत्पादन सामान्य बैंगन से 50-70 फीसदी अधिक होने का दावा किया है, जो भ्रामक है। इसी कंपनी की दूसरी हाईब्रीड बैंगन प्रजातियों (एमईबीएच-17) काउत्पादन पांच सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और कंपनी की रिपोर्ट में बीटी बैंगन के उत्पादन का दावा भी चार-छह सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
इससे स्पष्ट है कि उत्पादन में कोई खास अंतर आने वाला नहीं है। जानकारों का कहना है कि भारत में बीटी और परंपरागत बैंगन की किस्मों के बीच जीन के प्रभाव औरबीटी बैंगन के मानव स्वास्थ्य पर होने वाले असर पर कोई ठोस वैज्ञानिक परीक्षण नहीं हुए हैं।
कठोर कानून बनाएं
बीज स्वराज अभियान के निलेश देसाई और हमारा बीज अभियान के जयंत वर्मा का कहना है कि केरल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर मप्र में भी एक पुख्ताकानून बनाने की जरूरत है।
चार हजार साल का इतिहास
बैंगन की उत्पत्ति चार हजार साल पहले भारत में ही मानी जाती है। भारत में इसकी ढाई हजार किस्में संकलित हैं। बीटी बैंगन में तना व फल छेदक कीट के प्रकोप कोकम करने के लिए मिट्टी में पाए जाने वाले एक कीट के जीन को स्थापित किया गया है। बीटी यानी बेसीलस थरिनजींसिस मिट्टी में पाया जाने वाला वही जीवाणु है।बीटी बैंगन उगाने की कोशिशें नौ साल पहले शुरू हुई थीं। इसके खिलाफ स्वयंसेवी संगठनों ने अदालत की शरण ली। फिलहाल व्यावसायिक अनुमति के आवेदन केंद्रसरकार के समक्ष लंबित हैं। जीएम एप्रूवल कमेटी ने इसके उत्पादन संबंधी तकनीकी अनुमति दी है।
बीटी बैंगन समेत सभी जीएम फसलों पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। पर्यावरण और जैव विविधता के लिए यह घातक है। देश भर के जागरूक विशेषज्ञ इसका विरोधकर रहे हैं।''
-पद्मश्री कुट्टी मेनन, संरक्षक, ऑल इंडिया बायोडायनामिक एंड ऑर्गनिक फार्मिंग एसोसिएशन।
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