देश में बीटी बैंगन की व्यापारिक खेती की अनुमति की सिफारिश करने वाले विशेषज्ञ कमेटी के फैसले की स्वतंत्रता व इमानदारी को लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा उठाई जा रही शंकाओं को और भी बल मिला जब कमेटी के चेयरमैन ने यह स्वीकार किया कि उन्होने यह फैसला बीटी बैंगन निर्माता कंपनी के दबाव में लिया। यह खुलासा मशहूर जैव वैज्ञानिक पुष्प भार्गव ने किया है.
जानकारी के मुताबिक भारत में जीई तकनीक के पितामह डा पुष्पा भार्गव जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जीईएसी का सदस्य नियुक्त किया गया है, ने बताया कि 14 अक्तूबर 2009 को विशेषज्ञ समिति द्वारा बीटी बैंगन को मान्यता दिए जाने से कोई दो सप्ताह पूर्व विशेषज्ञ कमेटी के प्रमुख प्रो. अजुला रामचंद्र रेड्डी ने उन्होंने फोन पर बताया था कि बीटी बैंगन को मान्यता देने के लिए निर्माता कंपनी का दबाव तो था ही वहीं जीईएसी तथा कृषि मंत्री का भी फोन आया था। डा. भार्गव का कहना है कि बीटी बैंगन के सुरिक्षत होने की पुष्टि करने के लिए उनके द्वारा सुझाए गए जरूरी आठ तरह के टैस्ट भी नहीं किए गए हैं। डा भार्गव का कहना है कि बीटी बैंगन को लेकर जो टैस्ट किए गए है वह भी संतोषजनक नहीं हैं।
विशेषज्ञ समिति के एक अन्य सदस्य डा. के के त्रिपाठी जो बायोटैक्नालोजी विभाग की एक अहम रिव्यू कमेटी आफ जेनटिक मेनूप्लेशन के सदस्य सचिव हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग में हैदारबाद की एक बीज कंपनी नाजीविडू सीडस द्वारा एक शिकायत की गई जिसमें उन पर माहिको मोनसोंटो के पक्ष कार्य करते हुए अन्य कंपनियों से पक्षपात करने के आरोप लगाए गए हैं। डा. त्रिपाठी के खिलाफ शिकायत का अभी कोई निपटारा नहीं हुआ था कि और उन्हें विशेषज्ञ समिति में बिठा दिया गया. जिसके चलते उन्होंने माहीको के बीटी बैंगन के पक्ष में फैसला करने मे अहम भुमिका अदा की।
इसके अलावा विशेषज्ञ कमेटी में दो ऐसे सदस्य भी थे जो खुद बीटी बैंगन विकसित कर रहे हैं।इनमें से एक डा. मथुरा राय जो कि इंडियन इंस्टिच्यूट वैजीटेबल रिसर्च के निदेशक हैं। जिन्हें अमेरिका सरकार की फंड देने वाली ऐजंसी यूएस ऐड द्वारा माहीको के बीटी बैंगन को मानयता दिलाने के हेतु सभी औपचारिकताएं पूरी करने में सहायता प्रदान करने के लिए एक प्रोजेक्ट `एबीएसपी-2´ के माध्यम से धन दिया गया। ज्ञात हो कि यूएस ऐड को मोनसेंटो धन मुहैया करवाती है। डॉ राय ही माहीको के फील्ड ट्रायलों के मुख्य जांचकर्ता भी थे। यानि वो एक ही समय में एबीएसपी प्रोजेक्ट भी चला रहे थे, ट्रायलों की जांच भी कर रहे थे और फिर वहीं डा राय विशेषज्ञ कमेटी में भी शामिल होते हैं।
यह भी मामला उजागर हुआ है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि के तौर पर जो दो सदस्य डा.धीर सिंह व डा एसपी डोगरे कमेटी में थे उन्हें भी उनके आका का हुक्म था कि वो बैठकों में मौन रहें। खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक उमेंद्र दत्त ने कहा है कि कमेटी द्वारा की गई सिफारिश को लेकर पहले से ही शंकाएं व्याक्त की जा रही थीं। कमेटी की सिफारिश मानवीय स्वास्थ्य व पर्यावरण को की दृष्टि से नहीं बल्कि कंपनी के व्यापार को मद्देनजर की गई है। उन्होंने कहा कि अब जब सिफारिश करने वालों की हकीकत सामने आ गई है ऐसे में सरकार को इस सिफारिश को रद्द कर देना चाहिए। श्री दत्त ने कहा कि बीटी फसलों के सामर्थन में खड़े सभी व्याक्ति व संगठन भी इस धोखाधड़ी समझें और इसका विरोध करें। श्री दत्त ने कहा कि सरकार ऐसी कमेटी को भंग करे और उसकी सभी सिफारिशों को भी नामंजूर कर भारतवासियों के स्वास्थ्य व पर्यावरण की सुरक्षा करें।
कोअलिशन फार जीएम फ्री इंडिया की महासचिव कविता कुरूगंटी ने बताया कि बीटी बैंगन को मानवीय स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए सुरक्षित बताने वानी कमेटी ने स्वतंत्र व इमानदार फैसले नहीं लिए हैं। उन्होने कहा कि हकीकत यह है इस कमेटी में निष्पक्ष मेंबर नहीं थे बल्कि कंपनियों के हमदर्द या बिचौलिए ही शामिल किए थे तो फैसले कंपनी के पक्ष में ही होने थे। बीटी फसलों के विरोध में जुटे संगठनों ने मांग की है कि वह सिफारिश तुरंत वापिस ली जाए।
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